लोकदेवता पाबू जी का इतिहास
> पाबू जी के पिता नाम धांधलजी राठोड तथा माता का नाम कमलादे था | इनका विवाह अमरकोट के सूरजमल सोधा की पुत्री फूलमदे के साथ हुआ था |> ये मारवाड़ के राठोड वंश से सम्बंधित थे | इन्होंने गायो को छुड़ाने में अपने प्राण त्यागे | इनका का जन्म पलोदी तहसील के कोलू गाव में 1239 ई में हुआ था |
> विवाह मंडप से ही देवल चारनी की गाये अपने बहेनोई जिन्दराव खिंची के साथ छुड़ाने गये तथा देचू गाव के समीप हुऐ युद्ध में लड़ते हुऐ शहीद हो गये |
> ऊठ के पालक राइका (रेबारी ) इन्हें अपना अराध्ये देव मानती है तथा रेबारी जाती के लोक पाबू जी के पावडे गाती है |
> पाबू जी की गोड़ी का नाम केसर कलमी था | प्रमुख उपासक स्मारक स्थल कोलू (फलोदी) जोधपुर में स्थित है | जहां प्रति वर्ष मेला भरता है |
> पाबू जी का चिन्ह `भला लिए अस्वरोही है | ऊँटो के देवता के रूप में पाबू जी पूजे जाते है | ऊठ बीमार होने पर पाबू जी पूजा की जाती है |
> पाबूजी राजस्थान के लोक देवताओं में से एक माने जाते हैं। राजस्थान की संस्कृति में इन्हें विशेष स्थान प्राप्त है।
> पाबूजी उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने लोक कल्याण के लिए अपना सारा जीवन दाँव पर लगा दिया और देवता के रूप में हमेशा के लिए अमर हो गए।
> पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता है। राजस्थान में इनके यशगान स्वरूप 'पावड़े' (गीत) गाये जाते हैं व मनौती पूर्ण होने पर फड़ भी बाँची जाती है।
> 'पाबूजी की फड़' पूरे राजस्थान में विख्यात है।
> पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता है। इनकी प्रतिमा में इन्हें भाला लिए हुए एक अश्वरोही के रूप में अंकित किया जाता है।
> प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को पाबूजी के मुख्य 'थान' (मंदिर गाँव कोलूमण्ड) में विशाल मेला लगता है, जहाँ भक्तगण हज़ारों की संख्या में आकर उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं।
जन्म
> राजस्थान के प्राचीन लोक जीवन में कुछ ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्होंने लोक कल्याण के लिए अपना जीवन तक दाँव पर लगा दिया।> लोक देवता पाबूजी का जन्म संवत 1313 में जोधपुर ज़िले में फलौदी के पास कोलूमंड नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम धाँधल जी राठौड़ था। वे एक दुर्ग के दुर्गपति थे।
अवतार
> पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता है। इनकी प्रतिमा में इन्हें भाला लिए हुए एक अश्वरोही के रूप में अंकित किया जाता है।> प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को पाबूजी के मुख्य 'थान' (मंदिर गाँव कोलूमण्ड) में विशाल मेला लगता है, जहाँ भक्तगण हज़ारों की संख्या में आकर उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं
पाबूजी की फड़
> पाबूजी के यशगान में 'पावड़े' (गीत) गाये जाते हैं व मनौती पूर्ण होने पर फड़ भी बाँची जाती है। 'पाबूजी की फड़' पूरे राजस्थान में विख्यात है, जिसे भोपे बाँचते हैं। ये भोपे विशेषकर थोरी जाति के होते हैं।> फड़ कपड़े पर पाबूजी के जीवन प्रसंगों के चित्रों से युक्त एक पेंटिंग होती है। भोपे पाबूजी के जीवन कथा को इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं। इन भोपों के साथ एक स्त्री भी होती है, जो भोपे के गीतोच्चारण के बाद सुर में सुर मिलाकर पाबूजी की जीवन लीलाओं के गीत गाती है।
> फड़ के सामने ये नृत्य भी करते हैं। ये गीत रावण हत्था पर गाये जाते हैं, जो सारंगी के जैसा वाद्य यन्त्र होता है। 'पाबूजी की फड़' लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है।
> इस फड़ को एक बाँस में लपेट कर रखा जाता है। पाबूजी के अलावा अन्य लोकप्रिय फड़ 'देवनारायण जी की फड़' होती है।
No comments:
Post a Comment