लोकदेवता देवनारायण महाराज का इतिहास
> ये गुर्जर जाती के लोकदेवता है |
> इनका जन्म 1243ई में हुआ था |
> इनके पिता का नाम सवाई भोज एव माता का नाम सेडू खठाणी था |
> इनका का विवाह राजा जयसिंह की पुत्री की पुत्री पीपलदे के साथ हुआ था |
> गुर्जर जाती के लोक इन्हें विष्णु के अवतार मानते है |
> गुर्जर ही इनके अनुयाई है जो ``देवजी की पड़`` गायन द्वारा इनका यशोगान करते है |
> देवनारायण जी की फड़ अविवाहित गुर्जर भोपो द्वारा बांची जाती है ।
> देवनारायण जी की फड राज्य की सबसे प्राचीन व सबसे लम्बी फड है ।
> इनकी फड़ पर भारत सरकार द्वारा 1992 में पांच रुपये का डाक टिकट जारी किया गया ।
> देवनारायण जी की फड़ में जंतर वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है ।
> देवनारायण जी को राज्य क्रांति का जनक माना जाता है ।
> देवनारायण जी ने औषधि के रूप में गोबर और नीम के महत्व को स्पष्ट किया है ।
> इनका मूल 'देवरा' आसींद भीलवाड़ा से 14 मील दूर गोठा दडावत में है ।
> देवनारायण जी के देवरों में उनकी प्रतिमा के स्थान पर बडी ईटों की पूजा की जाती है ।
> देव जी के अन्य देवरे-देवमाली (ब्यावर, अजमेर) , देवधाम जोधपुरिया (निवाईं, टोंक) व देव डूंगरी पहाड़ी चित्तौड़ में है ।
> देवनारायणजी का मंदिर आसींद (भीलवाड़ा) में है जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मेला
लगता है
> मेवाड शासक महाराणा साँगा का आराध्य देव देवनारायण जी थे इसी कारण देवदूँगरी (चित्तौड़रगढ) मे देवनारायणजी का मंदिर का निर्माण राणा साँगा ने ही करवाया था ।
लोकदेवता तेजा जी महाराज का इतिहास
> तेजा जी महाराज का जन्म 1074 ई में नागौर जिले के खडनाल गाव में माघ शुक्ला चतुर्दशी के दिन हुआ था |
> इनकी माता का नाम राजकुवर तथा पिता का नाम ताहडजी था |
> तेजा जी विवाह पनेर (अजमेर जिले में) रायचन्द्र की पुत्री पैमलदे के साथ हुआ |
तेजाजी का हळसौतिया
जेठ के महिने के अंत में तेज बारिश होगई। तेजाजी की माँ कहती है जा बेटा हळसौतिया तुम्हारे हाथ से कर-
- गाज्यौ-गाज्यौ जेठ'र आषाढ़ कँवर तेजा रॅ
- लगतो ही गाज्यौ रॅ सावण-भादवो
- सूतो-सूतो सुख भर नींद कँवर तेजा रॅ
- थारोड़ा साथिड़ा बीजँ बाजरो।
सूर्योदय से पहले ही तेजाजी बैल, हल, बीजणा, पिराणी लेकर खेत जाते हैं और स्यावड़ माता का नाम लेकर बाजरा बीजना शुरू किया -
- उठ्यो-उठ्यो पौर के तड़कॅ कुँवर तेजा रॅ
- माथॅ तो बांध्यो हो धौळो पोतियो
- हाथ लियो हळियो पिराणी कँवर तेजा रॅ
- बॅल्यां तो समदायर घर सूं नीसर्यो
- काँकड़ धरती जाय निवारी कुँवर तेजा रॅ
- स्यावड़ नॅ मनावॅ बेटो जाटको।
- भरी-भरी बीस हळायां कुँवर तेजा रॅ
- धोळी रॅ दुपहरी हळियो ढाबियो
- धोरां-धोरां जाय निवार्यो कुँवर तेजा रॅ
- बारह रॅ कोसां री बा'ई आवड़ी।।
तेजाजी का भाभी से संवाद
नियत समय के उपरांत तेजाजी की भाभी छाक (रोटियां) लेकरआई। तेजाजी बोले-
- बैल्या भूखा रात का बिना कलेवे तेज।
- भावज थासूं विनती कठै लगाई जेज।।
देवर तेजाजी के गुस्से को भावज झेल नहीं पाई और काम से भी पीड़ित थी, उसने चिढने के लहजे में कहा-
- मण पिस्यो मण पोयो कँवर तेजा रॅ
- मण को रान्यो खाटो खीचड़ो।
- लीलण खातर दल्यो दाणों कँवर तेजा रॅ
- साथै तो ल्याई भातो निरणी।
- दौड़ी लारॅ की लारॅ आई कँवर तेजा रॅ
- म्हारा गीगा न छोड़ आई झूलै रोवतो।
- ऐहड़ा कांई भूख भूखा कँवर तेजा रॅ
- थारी तो परण्योड़ी बैठी बाप कॅ
भाभी का जवाब तेजाजी के कले जे में चुभ गया। तेजाजी नें रास और पुराणी फैंकदी और ससुराल जाने की कसम खा बैठे-
- ऐ सम्हाळो थारी रास पुराणी भाभी म्हारा ओ
- अब म्हे तो प्रभात जास्यां सासरॅ
- हरिया-हरिया थे घास चरल्यो बैलां म्हारा ओ
- पाणिड़ो पीवो नॅ थे गैण तळाव रो।
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