लोक देवता (Folk god) देवनारायण जी का इतिहास - ABOUT RAJASTHAN

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Monday, April 22, 2019

लोक देवता (Folk god) देवनारायण जी का इतिहास

लोकदेवता देवनारायण महाराज  का इतिहास

>  ये गुर्जर जाती के लोकदेवता है |
>   इनका जन्म 1243ई में हुआ था | 
>   इनके पिता का नाम सवाई भोज एव माता का नाम सेडू खठाणी था |
>    इनका का विवाह राजा जयसिंह की पुत्री की  पुत्री पीपलदे के साथ हुआ था |
>    गुर्जर जाती के लोक इन्हें विष्णु के अवतार मानते है | 
>    गुर्जर ही इनके अनुयाई है जो ``देवजी की  पड़`` गायन द्वारा इनका यशोगान करते है |

>  देवनारायण जी की फड़ अविवाहित गुर्जर भोपो द्वारा बांची जाती है ।
>   देवनारायण जी की फड राज्य की सबसे प्राचीन व सबसे लम्बी फड है ।
 >  इनकी फड़ पर भारत सरकार द्वारा 1992 में पांच रुपये का डाक टिकट जारी किया गया ।
>  देवनारायण जी की फड़ में जंतर वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है ।
>  देवनारायण जी को राज्य क्रांति का जनक माना जाता है । 
>  देवनारायण जी ने औषधि के रूप में गोबर और नीम के महत्व को स्पष्ट किया है ।
>  इनका मूल 'देवरा' आसींद भीलवाड़ा से 14 मील दूर गोठा दडावत में है ।
>  देवनारायण जी के देवरों में उनकी प्रतिमा के स्थान पर बडी ईटों की पूजा की जाती है ।
>  देव जी के अन्य देवरे-देवमाली (ब्यावर, अजमेर) , देवधाम जोधपुरिया (निवाईं, टोंक) व देव डूंगरी पहाड़ी           चित्तौड़ में है ।
>  देवनारायणजी का मंदिर आसींद (भीलवाड़ा) में है जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मेला
     लगता है 
>  मेवाड शासक महाराणा साँगा का आराध्य देव देवनारायण जी थे इसी कारण देवदूँगरी (चित्तौड़रगढ) मे             देवनारायणजी का मंदिर का निर्माण राणा साँगा ने ही करवाया था ।

लोकदेवता तेजा जी  महाराज  का इतिहास

> तेजा जी महाराज का जन्म 1074 ई में नागौर जिले के खडनाल गाव में माघ शुक्ला चतुर्दशी के दिन हुआ था |
> इनकी माता का नाम राजकुवर तथा पिता का नाम ताहडजी था |
> तेजा जी विवाह पनेर (अजमेर जिले में) रायचन्द्र की पुत्री पैमलदे के साथ हुआ |

तेजाजी का हळसौतिया

जेठ के महिने के अंत में तेज बारिश होगई। तेजाजी की माँ कहती है जा बेटा हळसौतिया तुम्हारे हाथ से कर-
गाज्यौ-गाज्यौ जेठ'र आषाढ़ कँवर तेजा रॅ
लगतो ही गाज्यौ रॅ सावण-भादवो
सूतो-सूतो सुख भर नींद कँवर तेजा रॅ
थारोड़ा साथिड़ा बीजँ बाजरो।
सूर्योदय से पहले ही तेजाजी बैल, हल, बीजणा, पिराणी लेकर खेत जाते हैं और स्यावड़ माता का नाम लेकर बाजरा बीजना शुरू किया -
उठ्यो-उठ्यो पौर के तड़कॅ कुँवर तेजा रॅ
माथॅ तो बांध्यो हो धौळो पोतियो
हाथ लियो हळियो पिराणी कँवर तेजा रॅ
बॅल्यां तो समदायर घर सूं नीसर्यो
काँकड़ धरती जाय निवारी कुँवर तेजा रॅ
स्यावड़ नॅ मनावॅ बेटो जाटको।
भरी-भरी बीस हळायां कुँवर तेजा रॅ
धोळी रॅ दुपहरी हळियो ढाबियो
धोरां-धोरां जाय निवार्यो कुँवर तेजा रॅ
बारह रॅ कोसां री बा'ई आवड़ी।।

तेजाजी का भाभी से संवाद

नियत समय के उपरांत तेजाजी की भाभी छाक (रोटियां) लेकरआई। तेजाजी बोले-
बैल्या भूखा रात का बिना कलेवे तेज।
भावज थासूं विनती कठै लगाई जेज।।
देवर तेजाजी के गुस्से को भावज झेल नहीं पाई और काम से भी पीड़ित थी, उसने चिढने के लहजे में कहा-
मण पिस्यो मण पोयो कँवर तेजा रॅ
मण को रान्यो खाटो खीचड़ो।
लीलण खातर दल्यो दाणों कँवर तेजा रॅ
साथै तो ल्याई भातो निरणी।
दौड़ी लारॅ की लारॅ आई कँवर तेजा रॅ
म्हारा गीगा न छोड़ आई झूलै रोवतो।
ऐहड़ा कांई भूख भूखा कँवर तेजा रॅ
थारी तो परण्योड़ी बैठी बाप कॅ
भाभी का जवाब तेजाजी के कले जे में चुभ गया। तेजाजी नें रास और पुराणी फैंकदी और ससुराल जाने की कसम खा बैठे-
ऐ सम्हाळो थारी रास पुराणी भाभी म्हारा ओ
अब म्हे तो प्रभात जास्यां सासरॅ
हरिया-हरिया थे घास चरल्यो बैलां म्हारा ओ
पाणिड़ो पीवो नॅ थे गैण  तळाव रो।

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