Pushkar's Famous Temples - ABOUT RAJASTHAN

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Monday, April 8, 2019

Pushkar's Famous Temples

                                         पुष्कर के प्रसिद्ध मंदिर



सुरम्य पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित तीर्थराज पुष्कर का महात्म्य वेद, पुराण, महाकाव्य, साहित्य, शिलालेख एवं लोक कथाओं में वर्णित है। अजमेर शहर से करीब 13 किलोमीटर दूरी पर स्थित पुष्कर अपनी अनेक विशिष्टताओं के कारण आज न केवल भारत में, वरन् दुनिया के महत्वपूर्ण धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में पहचाना जाता है। पुष्कर में कार्तिक पूर्णिमा पर लगने वाला पशु मेला विदेशी सैलानियों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। इसमें विदेशी पर्यटकों के मनोरंजन के लिए अनेक प्रकार की रोचक और रोमांचक प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं। पुष्कर में ब्रिटिशकाल के दौरान अनेक मंदिरों व धर्मशालाओं का निर्माण कराया गया। पुष्कर में करीब दो सौ गेस्ट हाऊस, होटल, धर्मशाला, रेस्टोरेंट आदि हैं। पर्यटन यहां का प्रमुख व्यवसाय है। माना जाता है कि पुष्कर में वर्ष 1975 से विदेशी पर्यटक आने लगे और जैसे−जैसे समय बीतता गया, यह एक धार्मिक स्थल के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल बन गया।

पुष्कर में पहली बार 1963 में पशुपालन विभाग द्वारा पशु मेला आयोजित किया गया। आज यह मेला कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर आयोजित किया जाता है, जिसमें घरेलू सैलानियों के साथ−साथ विदेशी सैलानी भी बड़ी संख्या में भाग लेते हैं। वर्ष 2005 में ब्रह्मा जी के मंदिर का केन्द्र सरकार द्वारा अधिग्रहण किया गया, 2007 में बूढ़ा पुष्कर का जीर्णोद्धार किया गया तथा 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे द्वारा नवनिर्मित घाटों का लोकार्पण किया गया। पुष्कर के निकट खुदाई में 27 जून, 2009 को भगवानपुरा और समरथपुरा गांव में ताम्रकालीन सभ्यता के अवशेष तांबे की 14 कुल्हाड़ियां मिलीं, जिन्हें विशेषज्ञों ने करीब पांच हजार वर्ष पुराना माना है।

सरकार की स्मार्ट सिटी एवं हैरिटेज संरक्षण योजनाओं में पुष्कर का भी चयन किया गया है और इन योजनाओं से पुष्कर का विकास होगा तथा यहां पर्यटन व्यवसाय में और अधिक वृद्धि होगी।
                             
                                   Pushkar's famous temples
The greatness of Tirthaj Pushkar, situated in the picturesque mountain ranges, is described in the Vedas, Puranas, epics, literature, inscriptions and folklore. Located at a distance of 13 km from Ajmer city, Pushkar is recognized as one of the most important religious tourist sites in the world, not only in India but due to its many specialties. The animal fair that takes place on Kartik Purnima in Pushkar is a major center for attraction of foreign tourists. In this, many interesting and exciting events are organized to entertain foreign tourists. During the British period, many temples and shrines were built in Pushkar. Pushkar has about two hundred guest houses, hotels, Dharamshala, restaurants etc. Tourism is the main business here. It is believed that foreign tourists came to Pushkar in the year 1975 and as time went by, it became an international tourist destination in the form of a religious place.


Animal Fairs were organized for the first time in 1963 by animal husbandry department in Pushkar. Today this fair is held on the occasion of Kartik Purnima, in which foreign tourists along with domestic tourists also participate in a large number. In 2005, the temple of Brahma ji was acquired by the Central Government, in 2007, the old Pushkar was restored and in 2008, the newly built ghats were released by the then Chief Minister, Smt. Vasundhara Raje. In Khudai near Pushkar, on June 27, 2009, Lord Buddha and Samarathpura village got 14 axes of copper from the remains of copper civilization, which the experts considered to be nearly five thousand years old.

Pushkar has also been selected in the Government's Smart City and Heritage Conservation Schemes and these plans will be developed by Pushkar and there will be more growth in tourism business.
              
                 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 
देश के समस्त तीर्थों में पुष्कर को तीर्थराज की संज्ञा से विभूषित किया गया है। यहां जगतपिता ब्रह्मा जी का दुनिया में अकेला विख्यात मंदिर है। यह स्थल महान नैतिक एवं आध्यात्मिक जीवन मूल्यों के विषय में चिंतन करने को प्रेरित करता है। पुष्कर नागा पहाड़ की गोद में रेतीले धरातल पर बसा है। चारों तरफ हरी−भरी पहाड़ियां हैं तथा अनेक जलकुण्ड हैं। यहां रत्नगिरी, पुरूहुता तथा प्रभुता की पर्वत श्रृंखलाएं मौजूद हैं। कहा जाता है कि नागा पहाड़ी के नीचे कभी वर्षाकालीन सागरमती नदी प्रवाहित होती थी।

पद्म पुराण से ज्ञात होता है कि ब्रह्मा जी के हाथ से नीलकमल का पुष्प इस क्षेत्र में गिरा और पुष्प की पंखुड़ियां तीन स्थानों पर गिरने से वहां जलधाराएं फूट निकलीं। इन तीनों स्थानों को ज्येष्ठ पुष्कर, मध्य पुष्कर और कनिष्ठ पुष्कर कहा गया। इस स्थल को पवित्र करने के लिए यहां कार्तिक माह में यज्ञ किया गया और इसी कारण आज भी पुष्कर में कार्तिक स्थान का अपना महत्व है। यहां स्नान करने से मोक्ष मिलता है तथा श्राद्ध करने से पितरों को सद्गति प्राप्त होती है। पुराणों में इसे सिद्ध क्षेत्र माना गया है।

रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी पुष्कर की महत्ता बताई गई है। पुष्कर की खुदाई में प्राप्त हुए सिक्कों से महाभारत के प्रसंग का संकेत भी मिलता है। पृथ्वीराज विजय एवं हमीर महाकाव्य में भी पुष्कर का उल्लेख है। पुष्कर संबंधी शिलालेख सांची के स्तूप, बड़ली, नासिक, शाकंभरी तथा हर्षनाथ मंदिर आदि में पाए गए हैं। पुष्कर में कृष्ण, कुंती, पाण्डवों एवं भृतहरि से संबंधित लोककथाएं भी प्रचलित हैं। पुष्कर के जैनियों एवं बौद्धों की नगरी होने के भी प्रमाण मिले हैं। बताया जाता है कि विश्वामित्र ने पुष्कर में ही गायत्री मंत्र की रचना की थी।

आध्यात्मिक दृष्टि से जिस प्रकार त्रेतायुग में नेमिशारण्य, द्वापरयुग में कुरूक्षेत्र और कलयुग में गंगा तीर्थ विख्यात रहे, उसी प्रकार सतयुग में पुष्कर तीर्थ का महत्व रहा। पुष्कर सरोवर की गणना मानसरोवर, बिंदु सरोवर, नारायण सरोवर, पम्पा सरोवर के साथ पांच पवित्र सरोवरों में की जाती है। यहां अगस्त्य मुनि, महर्षि विश्वामित्र, गालव ऋषि, मार्कण्डेय मुनि, ऋषि जसदग्रि ने यहां तपस्या की थी और यह क्षेत्र तपोभूमि के नाम से विख्यात हो गया। नागा पहाड़ी पर अगस्त्य मुनि की गुफा आज भी स्थित है, जहां रामझरोखा नामक स्थान पर राम, सीता एवं लक्ष्मण के आने की बात कही जाती है। पुष्कर के दर्शनीय स्थल इस प्रकार हैं|


              Historical Background

In all the pilgrimage places of the country, Pushkar has been declared as Tirthaaj. Here is Jagatpita Brahma ji's only famous temple in the world. This site inspires to contemplate the values ​​of great ethical and spiritual life. Pushkar Naga is situated on the sandy ground in the lap of the mountain. There are green hills and there are many water reservoirs. There are mountain ranges of Ratnagiri, Puruhuta and Sovereignty. It is said that the rainy season of river Sagrimati flowed under the Naga hill.

From Padma Purana, it is known that the flowers of Nilkamal fell under the hands of Brahma ji and the water bodies flashed out of flower petals falling at three places. These three places were called as Senior Pushkar, Madhya Pushkar and Junior Pushkar. To sanctify this place, Yajna was performed here in the Kartik month, and for this reason, Kartik place in Pushkar still has its own significance. Bathing here gives liberation and Shraddha receives virtue. It is considered a proven area in the Puranas.

In the epics like Ramayana and Mahabharata, the importance of Pushkar is also stated. The coins received in the excavation of Pushkar also indicate the context of the Mahabharata. Pushkar is also mentioned in Prithviraj Vijay and Hamir epics. The Pushkar inscriptions have been found in Sanchi's Stupa, Badli, Nasik, Shakambhari and Harshnatha temple. Folktales related to Krishna, Kunti, Pandavas and Bhadharri are also popular in Pushkar. There is also evidence of Pushkar's Jainism and Buddhist city. It is said that Vishwamitra had composed Gayatri Mantra in Pushkar itself.

                 
                      पुष्कर सरोवर 
          

अर्धचन्द्राकार पवित्र पुष्कर सरोवर प्रमुख धार्मिक पर्यटक स्थल है। यहां 52 घाट बने हैं, जिन पर 700 से 800 वर्ष प्राचीन विभिन्न देवी−देवताओं के मंदिर बनाए गए हैं। देश के चार प्रमुख सरोवरों में माने जाने वाले पुष्कर सरोवर की धार्मिक आस्था का पता इसी बात से चलता है कि यहां स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। प्रातःकाल की बेला में जब सूर्योदय होता है तथा गोधूलि की वेला में जब सूर्यास्त होता है, पुष्कर का दृष्य अत्यंत ही मनोरम होता है। इस दृश्य को देखने के लिए घाटों पर सैलानियों और श्रद्धालुओं का जमावड़ा देखा जा सकता है।

यहां गऊघाट सबसे बड़ा है, जिस पर दो शिव मंदिर, राधा−माधव मंदिर तथा अन्नपूर्णा माता के मंदिर स्थापित हैं। भिनाय के एक राजा तथा जोधपुर के ज्योतिषी द्वारा शिव मंदिरों तथा भरतपुर के राजा द्वारा राधा−माधव जी एवं अन्नपूर्णा माता मंदिरों का निर्माण कराया गया। वराह घाट पर रामेश्वर भगवान का मंदिर मुख्य मंदिर है। यहां किसानों द्वारा पंचदेवरी स्थापित की गई। इसी घाट पर गणेश जी और रघुनाथ जी के मंदिर भी स्थापित हैं। शिव घाट पर अजमेर के मराठा सूबेदार गोविन्दराव ने गोविन्द जी का मंदिर बनवाया। इन्द्र घाट पर जयपुर के श्रद्धालु बख्शी सुंदर लाल ने देवराज इन्द्र का मंदिर बनवाया। चन्द्र घाट पर चन्द्रमा की मूर्ति स्थापित है। छतरी घाट पर कोटेश्वर महादेव का मंदिर है। इस घाट की मरम्मत वर्ष 1755 ईस्वीं में दौलतराव सिंधिया द्वारा करवाई गई थी।

बद्री घाट पर 300 वर्ष प्राचीन बद्रीनारायण मंदिर, रघुनाथ घाट पर रघुनाथ जी का मंदिर, महादेव घाट पर 108 शिवलिंग मंदिर, रामघाट पर नाजिर जी एवं रामेश्वर के मंदिर, मोदी घाट पर मुरली मनोहर मंदिर, बालाराव घाट पर गोपाल जी और रोड़ी जी का मंदिर, नृसिंह घाट पर नृसिंह जी का मंदिर तथा विश्राम घाट पर शिव मंदिर बने हैं।

सरोवर के भदावर राजा के घाट पर इन्द्रेश्वर महादेव मंदिर, परसराम घाट पर राधा−माधव मंदिर, चीर घाट पर शीतला माता, गणेश जी एवं शिव जी के मंदिर, करणी घाट पर करणी माता मंदिर, यज्ञ घाट पर शिव मंदिर, छींक घाट पर छींक माता के मंदिर स्थापित हैं।

समय−समय पर घाटों का जीर्णोद्धार और विकास कार्य किए गए तथा पिछले 10 वर्षों में कई घाटों के स्वरूप में परिवर्तन आया और वे आकर्षक बन गए हैं।

                    Pushkar Lake

Crescent Pushkar Pushkar Sarovar is the main religious tourist spot. Here, 52 ghats are built, on which 700 to 800 years old temples of various deities were made. That's what moves the religious faith of Pushkar Lake, believed to four major ponds in the country that it leads to salvation bath. When sunrise occurs in the Bela of the morning and when the sunset occurs in the twilight villa, the view of Pushkar is very pleasant. To see this scene, the gathering of tourists and devotees can be seen on the ghats.

 Here is the largest Gaughat, which has two Shiva temples, Radha-Madhav temple and Annapurna Mata's temples established. A king Bhinai and Radha by Raja Shiva temples and Bharatpur by astrologers Jodhpur-Madhav Ji and Annapurna were built Mata temple. Varaha temple Rameshwar God's Wharf is the main temple. Panchdevar was established by farmers here. The temples of Ganesh ji and Raghunath ji are also established on this ghat. On the Shiv Ghat, Ajmer's Maratha Subedar Govindrao built a temple of Govind ji. On Indra Ghat, Shraddalu Bakshi Sundar Lal of Jaipur built the temple of Devraj Indra. Moon set Moon sculpture on the pier. Umbrella Koteshwar Mahadev temple on the pier. The repair of this ghat was done by Daulatrao Scindia in the year 1755 AD.

Badri ancient Badri temple 300 years on the pier, Raghunath ferries Raghunath Ji Temple, Mahadev Ghat on the 108 Shiva temples, Ramghat on Nazir ji and Rameshwar temple, Modi Murli Manohar temple on the pier, the temple of Gopal Ji and scree g Balarav Ferries , The temple of Nrusingh ji on the Nrusimha Ghat and the Shiva Temple are built on the rest of the Ghat.

 Radha Madhav Mandir Ghat Bdavar king lake on Indraeshwar Mahadev Temple, Parasram pier, rip Karni Mata temple variola mother, Ganesha and Temple of Shiva, trowel ferry pier, sacrifice sneeze at Shiva Temple, sneeze ferry pier Mata temple established.

 Time were renovated deficits over time and development work and a change in the nature of many losses in the last 10 years and they have become attractive.

                 विश्व प्रसिद्ध ब्रह्मा मंदिर

    
सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का प्राचीन देवालय धरातल से करीब 50 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर का स्वरूप धरातल से ही नयनाभिराम लगता है। विशाल मंदिर में प्रवेश करते ही बांयी ओर ऐरावत हाथी पर देवराज इन्द्र की प्रतिमा तथा दांयी ओर कुबेर की प्रतिमा बनी है। बांयी तरफ ही सिद्धेश्वेर महादेव एवं नवग्रह के मंदिर भी हैं। इसी ओर तिबारी की एक दीवार में छोटे−छोटे शिलालेख लगे हैं। मंदिर परिसर में दांयी तरफ गणेश जी, श्री कृष्ण एवं शिव के मंदिर हैं। चारों वेद भी यहाँ रखे गए हैं।

ब्रह्मा मंदिर का विशाल प्रांगण संगमरमरी पत्थर के सौन्दर्य से बना है। यहीं पर पातालेश्वर महादेव का मंदिर भी है। दांयी तरफ सीढ़ियां उतरकर नीचे जाने पर प्राचीन शिवलिंग, गणेश जी, माता पार्वती और पंचमुखी महादेव की प्रतिमाएं हैं। प्रवेश द्वार के भीतरी भाग पर ब्रह्मा का वाहन राजहंस है।

प्रमुख मंदिर के गर्भगृह में ब्रह्मा जी की बैठी हुई मुद्रा में आदमकद प्रतिमा स्थापित है। चतुर्मुखी इस प्रतिमा के तीन मुख सामने से दिखाई देते हैं। प्रतिमा को करीब 800 वर्ष पुराना बताया जाता है। सैंकड़ों वर्षों से प्रतिमा का प्रतिदिन जलस्नान व पंचामृत अभिषेक किया जाता है। मंदिर के आंगन में ब्रिटिशकालीन एक−एक रूपये के सिक्के जड़े हैं। संगमरमर के कलात्मक स्तंभ मोह लेते हैं। मंदिर परिक्रमा मार्ग में सावित्री माता का मंदिर स्थापित किया गया है।

ज्ञात होता है कि ब्रह्मा जी के मंदिर का पहली बार सातवीं सदी में जगतगुरु आदि शंकराचार्य ने जीर्णोद्धार कराया था। मुगलकाल में जहांगीर ने भी यहां मरम्मत कराई थी। वर्ष 1809 ईस्वीं में सिंधिया राज के प्रशासक गोकुल चंद पारीक ने यहां एक लाख रूपये से अधिक व्यय कर पुनर्निमाण कराया। मंदिर का वर्तमान स्वरूप इन्हीं की देन माना जाता है। मंदिर के पीछे रत्नगिरी पहाड़ पर सावित्री माता का मंदिर बना है। यहाँ तक पहुँचने के लिए रोप−वे बना है। ब्रह्मा का ऐसा मंदिर अन्यत्र नहीं होने से इस मंदिर का अपना विशेष महत्व है।

           World Famous Brahma Temple

The ancient temple of Lord Brahma, the creator of the universe, is situated at an altitude of about 50 feet from the ground floor. The nature of the temple looks panoramic from the surface. On entering the huge temple, the statue of Devraj Indra on the left and the Eiravat elephant and the image of the right and Kuber is made. On the left side are the temple of Siddeswara Mahadev and Navagraha. On the same side there are small inscriptions in a wall of Tibari. Ganesh ji, temple of Shri Krishna and Shiva are on the right side of temple complex. The four Vedas are also housed here.

 The huge courtyard of the Brahma temple is made of the beauty of the marble stone. Here, there is also a temple of Pateleshwar Mahadev. On leaving the stairs on the right side, there are statues of ancient Shivling, Ganesh ji, Mata Parvati and Panchmahati Mahadev. Brahma's vehicle is violet on the inner part of the entrance gate.

 In the sanctum sanctorum of the main temple, there is a soul-shaped statue in the sitting position of Brahma ji. Chaturmukhi appears in front of three faces of this statue. The statue is reported to be 800 years old. For hundreds of years the statue is used for burning and burning the Panchamrta. In the courtyard of the temple, British rupees one rupee rupees are rooted. The artistic pillar of marble captures. The temple of Savitri Mata has been established in the temple Parikrma Marg.

 Known to have had renovated the Brahma temple first Jagadguru Adi Shankaracharya in the seventh century. Jahangir had also repaired here in the Mughal period. Year 1809 Chand Pareek Administrator Gokul Scindia rule in AD be renovated by spending even more than one lakh. The current format of the temple is believed to be attributed to them. Behind the temple, a temple of Savitri Mata is built on Ratnagiri mountain. Even to reach ropeway made. Since this temple of Brahma is not elsewhere, this temple has its own special significance.

                      वराह मंदिर 

प्राचीनता की दृष्टि से करीब 900 वर्ष पुराना वराह मंदिर का निर्माण अजमेर के चौहान शासक अर्णीराज ने कराया था। पुष्कर सरोवर के वराह घाट के पास स्थित वराह चौंक से एक रास्ता बस्ती के भीतर इमली मोहल्ले तक जाता है, जहां यह विशाल मंदिर स्थापित है। करीब 30 फुट ऊंचा मंदिर, चौड़ी सीढि़यां तथा किले जैसा प्रवेश द्वार आकर्षण का केन्द्र है। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 1727 ईस्वीं का है। बताया जाता है कि कभी मंदिर का शिखर 125 फीट ऊंचा था, जिस पर सोन चराग (स्वर्ण दीप) जलता था, जो दिल्ली तक दिखाई देता था। इस दीपक में एक मण घी जलने की क्षमता थी। मंदिर पुष्कर के पाराशर ब्राह्मणों की आस्था का केन्द्र बिंदु है।

मंदिर में प्रवेश करते ही धर्मराज की प्रतिमा दिखाई देती है। प्रतिमा पर राई की कटोरी चढ़ाने की परम्परा है। दांयी ओर गरूड़ मंदिर है। धर्मराज की प्रतिमा के बाद भगवान की बैठक है। इस बैठक में हर वर्ष शरद पूनम के दिन लक्ष्मी−विष्णु की युगल प्रतिमा विराजमान की जाती है। मुख्य मंदिर में विष्णु के अवतार वराह भगवान की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के नीचे सप्त धातु से निर्मित करीब सवा मन वजन की लक्ष्मी−नारायण की प्रतिमा है। यहीं पर बून्दी के राजा द्वारा भेंट किया गया लोहे का सवा मनी भाला रखा गया है। जलझूलनी ग्यारस पर लक्ष्मी−नारायण की सवारी धूमधाम से निकाली जाती है। चैत्र माह में वराह नवमी के दिन भगवान का जन्मदिन मनाया जाता है। जन्माष्टमी व अन्नकूट के अवसर पर उत्सव आयोजित किए जाते हैं। मंदिर में विशेष कर चावल का प्रसाद चढ़ता है।

                    Varah Temple

From the point of view of ancient times, the 900-year-old Varah temple was built by the Chauhan ruler of Ajmer Arniraj. A route from Barah Chowk located near the Varah Ghat of Pushkar Sarovar goes to Imli Mohalla within the settlement, where this huge temple is established. About 30 feet high temple, broad stairs and fortress gate are the center of attraction. The present form of the temple dates back to 1727 AD. It is said that once the peak of the temple was 125 feet high, on which the gold lamp (golden lamp) was burnt, which was visible till Delhi. This lamp had the capacity to burn gourd ghee. The temple is the center point of faith of Pushkar's Parashar Brahmins.

 After entering the temple, the statue of Dharmaraj is seen. There is a tradition of giving a mustard bowl on the statue. The right is Garuda Temple. There is God's meeting after the statue of Dharmaraj. In this meeting, every year the couple's image of Lakshmi-Vishnu is held on the day of Sharad Poonam. In the main temple, the idol of Lord Vishnu's Avatar Varah is established. The idol of Laxmi-Narayan, the weight of the weight of nearly one million made from satin metal under the idol. This is where the iron bowl of iron offered by the king of Bundi has been kept. Laxmi-Narayan's ride on Jaljulni Gyaras is derived from pomp. God's birthday is celebrated on the twelfth day of the month of Chaitra. Festivals are held on the occasion of Janmashtami and Annakoot. The offerings of rice especially in the temple ascend.

                 श्री रमा वैकुण्ठ मंदिर

ब्रह्मा जी के मंदिर के बाद इस मंदिर का विशेष महत्व है, जिसे रंगा जी का मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर करीब 20 बीघा भूमि पर बना है। मंदिर के साथ−साथ इस परिसर में बगीचा, संस्कृत महाविद्यालय, छात्रावास एवं आवासीय भवन भी बने हैं। बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण डीडवाना के उद्योगपति मंगनीराम बांगड़ ने वर्ष 1920−25 में कराया था, जिस पर करीब 8 लाख रूपये व्यय हुए।

मंदिर का प्रवेश द्वार आकर्षक एवं विशाल है। भीतर जाने पर सामने ही रमा वैकुण्ठ का मंदिर नजर आता है। मंदिर के ऊतंग गोपुरम पर 350 से अधिक देवताओं के चिन्ह बने हैं। यह गोपुरम दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला शैली का अनुपम उदाहरण है। मंदिर के सामने प्रांगण में ही एक बड़ा स्वर्णिम गरूड़ ध्वज नजर आता है। मंदिर के पास अभिमुख गरूड़ मंदिर स्थापित है। मुख्य मंदिर के चारों तरफ पक्के दालान के बीच में तीन−चार फीट ऊंचे चौकोर बड़े संगमरमरी चबूतरे पर मंदिर स्थित है। मुख्य प्रतिमा व्यंकटेश भगवान विष्णु की काले पत्थरों की आभूषणों एवं वस्त्रों से सुसज्जित है। इसी को वैकुण्ठ नाथ की प्रतिमा कहा जाता है। मंदिर में ही श्रीदेवी, तिरूपति नाथ, भूदेवी, लक्ष्मी व नरसिंह की मूर्तियां भी हैं।

परिक्रमा मार्ग में दोनों तरफ दीवारों पर आकर्षक रंगीन चित्र बने हैं। इनमें विविध देवी−देवताओं की झांकियां प्रदर्शित की गई हैं। दीवार पर जगह−जगह काले पत्थर की छोटी प्रतिमाएं भी बनाई गई हैं। परिक्रमा मार्ग में ही संगमरमर के कलात्मक स्तंभ बने हैं। सम्पूर्ण परिक्रमा मार्ग अत्यंत लुभावना लगता है।
 मंदिर के दोनों तरफ द्वारपाल एवं ऐरावत हाथी हैं। बड़े परिसर में मुख्य दरवाजे के बांयी तरफ लक्ष्मीनारायण मंदिर, उत्सव मंडप व झूला मंडप बने हैं। दांयी ओर रामानुज स्वामी का मंदिर है। मुख्य मंदिर के पीछे की तरफ यज्ञशाला एवं बगीचा बनाए गए हैं तथा इनके दांयी ओर छात्रावास है।
व्यंकटेश भगवान मंदिर में दिन में छह बार भोग लगता है। भोग की सामग्री प्रसाद के रूप में वितरित की जाती है। मंदिर में चार शुक्रवार, दो ग्यारस, दो पूनम−अमावस, संक्रांति और रेवती नक्षत्र पर प्रतिमाह दस उत्सव मनाए जाते हैं। बड़े उत्सव साल में तीन बार ब्रह्मोत्सव, झूलोत्सव और कार्तिक मेला उत्सव आयोजित किए जाते हैं। चैत्र में ब्रह्मोत्सव दस दिन चलता है, जिसमें प्रतिदिन भगवान की सवारी निकाली जाती है। झूलोत्सव सावन के हिण्डोलों के रूप में दूर−दूर तक विख्यात है। ग्यारस और पूनम के हिण्डोले विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।


             Sri Rama Vaikunth Temple

This temple has a special significance after the temple of Brahma ji, which is also called the temple of Rangaji. The temple is made up of about 20 bighas of land. Along with the temple, this complex also has a garden, Sanskrit college, hostel and residential building. It is said that the temple was constructed by industrialist Mangniram Bangar, of Dedwana in the year 1920-25, which cost about 8 lakh rupees.

The entrance to the temple is attractive and spacious. On the inside you see the temple of Rama Vaikuntha in front of you. On the temple's tissue gopuram, the symbols of more than 350 gods are made. This gopuram is an outstanding example of the South Indian architectural style. A large Golden Garuda flag is seen in front of the temple in the courtyard itself. There is an ancient Garuda temple situated near the temple. The temple is situated on a large marble terrace with three to four feet high square in the middle of the pakka dalan around the main temple. The main image Vyankatesh is equipped with Lord Krishna's black stone ornaments and garments. This is called the statue of Vaikuntha Nath. There are idols of Sridevi, Tirupati Nath, Bhudevi, Lakshmi and Narasimha in the temple itself.

There are attractive colorful pictures on the walls on either side of the circus route. These flags are displayed in various goddesses. Small stone statues of black stone are also made on the wall. Artistic columns of marble are made in the circus route only. The whole orbiting path seems very tempting.

On both sides of the temple are the gatekeepers and the aeravat elephants. On the left side of the main compound, the Lakshminarayan Temple, the festive pavilion and the swing pavilions are made in the big compound. The temple on the right is Ramanuj Swami. Yagna and gardens have been built on the back side of the main temple and they have the right and hostel.

Venkatesh God temple enjoys six times a day. The content of the enjoyment is distributed in the form of offerings. Ten festivals are celebrated on the temple on Friday, two gianas, two Poonam-Amavas, Sankranti and Revati Nakshatra. Three times Brahmotsav, Jhulotsav and Kartik Mela festivals are organized in the big festival year. Brahma festival takes place ten days in Chaitra, in which every day God's rides are taken out. Jhulotsav is famous as far away as the Hindolas of Sawan. Hindolay of Gyaras and Poonam is particularly famous.


              भगवान रंगनाथ वेणुगोपाल मंदिर

दक्षिण भारत स्थापत्य शैली पर आधारित भगवान रंगनाथ वेणुगोपाल का विशाल मंदिर वराह चौक के पास स्थित है। मंदिर का निर्माण दक्षिण भारत के एक सेठ पूरनमल गनेरीवाल द्वारा 1844 ईस्वीं में करवाया गया था। मंदिर का गोपुरम और कलश दूर से ही नजर आता है। विशाल द्वार से अंदर प्रवेश करने पर पक्का दालान और कमरे बने हैं। यहीं पर उतंग स्वर्णिम गरूड़ ध्वज है, जिसके पास गरूड़ का छोटा सा मंदिर है, जो भगवान वेणुगोपाल की तरफ मुख किए हुए है। दांयी ओर मुख्य मंदिर की सीढ़ियां जाती हैं। गर्भगृह में बंशी बजाते हुए भगवान वेणुगोपाल की श्याम वर्ण की लुभावनी प्रतिमा है। मंदिर मकराना के श्वेत पत्थर से निर्मित है, जिसके दोनों ओर जय−विजय द्वारपाल हैं। इसी मंदिर में रूकमणी, श्रीकृष्ण, भूदेवी, सत्यभामा की पंचधातु की प्रतिमाएं हैं।

चैत्र माह में भगवान रंगनाथ का विवाह उत्सव मनाया जाता है। बांयी तरफ रामानुजाचार्य का मंदिर है, जिसमें अन्य 12 आचार्यों की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। मंदिर रामानुजी वैष्णव संप्रदाय का है। प्रतिवर्ष आर्द्रा नक्षत्र में यहां उत्सव मनाया जाता है, जो दस दिन चलता है। गर्भगृह में यहां वेणुगोपाल, रंगनाथ व रामानुजाचार्य के तीन मंदिर हैं। मंदिर में प्रतिदिन चार बार भोग लगाया जाता है। मुख्य मंदिर के अलावा दालान वाले परिक्रमा मार्ग में भी लक्ष्मी जी, अनन्ताचार्य, गोदम्बा माता आदि के शिखरबंद मंदिर बनाए गए हैं। कार्तिक माह में 15 दिन तक झूलोत्सव तथा बसंत के दिनों में 12 दिनों तक ब्रह्मोत्सव आयोजित किया जाता है।

          Lord Ranganath Venugopal Temple

Located on the south India architectural style, Lord Ranganath Venugopal's huge temple is situated near the Barah Chowk. The temple was constructed in 1844 by a Seth of South India by Purnamanal Ganerial. Gopuram and kalash of the temple are seen from far away. The main hall and the rooms are built after entering the vast gate. Here is the golden gurud flag, which has a small temple of Garud, which is facing Lord Venugopal. The stairs are taken to the right and the main temple. The Venus of Venugopal while playing a bunshi in the sanctum sanctorum is a breathtaking statue of Shyam Vignan. The temple is composed of Makrana's white stone, on which both Jai-Vijay is the gatekeeper. This temple has statues of Rukmani, Shrikrishna, Bhudevi, Satyabhama Panchdhat.

 Lord Ranganath's wedding reception is celebrated in Chaitra month. There is Ramanujacharya temple on the left, in which the statues of 12 other Acharyas are also established. Temple Ramanuji belongs to the Vaishnava sect. A festival is celebrated every year in the Ardha constellation, which runs ten days. There are three temples of Venugopal, Ranganath and Ramanujacharya in the sanctum sanctorum. In the temple four times a day is allowed. In addition to the main temple, the Shikharband Mandir of Lakshmi ji, Anantacharya, Godbba Mata etc. has also been built in the parikrama road. In the Kartik month 15 days of Jhulotsav and in the days of spring Brahma festival is organized for 12 days.

                   सावित्री माता मंदिर

पुष्कर में रत्नगिरी पर्वत शिखर पर ब्रह्मा मंदिर के पीछे सावित्री माता का मंदिर स्थापित है। दो किलोमीटर लम्बा मैदानी रास्ता पार करके पर्वत की सीधी चढ़ाई मंदिर तक जाती है। अब मार्ग में कुछ स्थानों पर पक्की सीढ़ियां भी बनाई गई हैं। जो दर्शनार्थी यहां तक पहुंचने में असमर्थ पाते हैं, उनके लिए ब्रह्मा मंदिर के पीछे की तरफ सावित्री माता का मंदिर स्थापित किया गया है।

बताया जाता है कि पहाड़ी पर स्थित मंदिर में पहले सावित्री माता के पगल्या (चरण) स्थापित थे तथा बाद में इनकी प्रतिमा स्थापित की गई। कुछ लोगों का कहना है कि जोधपुर के राजा अजीत सिंह (1687−1724) के पुरोहित ने यहां प्रतिमा स्थापित कर छोटा सा मंदिर बनाया। इस मंदिर का विस्तार डीडवाना के उद्योगपति बांगड़ ने कराया। मंदिर का वर्तमान स्वरूप इन्हीं की देन है। सावित्री माता बंगालियों के लिए सुहाग की देवी हैं। सावित्री माता मंदिर में प्रतिवर्ष भाद्रपद माह की अमावस के बाद वाली अष्टमी को मेला भरता है। इस मंदिर से पुष्कर का नयनाभिराम दृश्य दिखाई देता है।

                Savitri Mata Temple

The temple of Savitri Mata is located behind the Brahma temple on Ratnagiri mountain range in Pushkar. Crossing a two kilometer long plinth, the direct mountain climbing goes up to the temple. Now, some stairs have also been made in some places on the way. For those who are unable to reach here, a temple of Savitri Mata has been set up behind them for the Brahma temple.

 It is said that in the temple situated on the hill, the first (stage) of Savitri Mata was established and later its statue was established. Some people say that the priests of King Ajit Singh of Jodhpur (1687-1724) built a small temple by installing statue here. The temple is expanded by industrialist Bangad of DeDWana. The present form of the temple is theirs. Savitri is the Goddess of Suhag for the Bengali people. Savitri fills the fair every year in the temple of Ashtami after the new month of Bhadrapad month. This temple has a panoramic view of Pushkar.


                  बिहारी जी का मंदिर 

वल्लभ संप्रदाय की पुष्टिमार्गीय शाखा का एकमात्र बिहारी जी का मंदिर है, जिसे बाईजी का मंदिर भी कहा जाता है। बताया जाता है कि जोधपुर की राजकुमारी रेख कंवर का जयपुर के महाराजा जगतसिंह के साथ विवाह हुआ, तब उन्होंने यह मंदिर अपने गुरु को दे दिया था। जोधपुर से आने वाले तीर्थ यात्री इस कारण इस मंदिर को बाईजी का मंदिर भी कहते हैं।

बिहारी जी का मंदिर टयूरिस्ट बंगले 'सरोवर' के समीप स्थित है। मंदिर में राधा−कृष्ण की प्रतिमाएं विद्यमान हैं। कृष्ण प्रतिमा श्याम स्वरूप में है, जिन्हें बिहारी जी कहा जाता है। पास में ही मदनमोहन और बालकृष्ण के गौरस्वरूप विग्रह हैं। पुष्टिमार्गीय भक्ति परम्परा में प्रतिमा को ही विग्रह कहते हैं।

मंदिर में मंगला आरती, सिंगार आरती, राजभोग आरती, उत्थापन, संध्या व शयन आरती पर छह बार भोग लगाने की परम्परा है। हर आरती के समय अलग−अलग प्रकार के व्यंजन युक्त भोग लगाया जाता है। भोग के समय ही भगवान के दर्शन के लिए मंदिर के पट खोले जाते हैं। जन्माष्टमी एवं सावन के अवसर पर यहां विशेष उत्सव आयोजित किए जाते हैं। यह विशाल मंदिर आज उपेक्षित स्वरूप में है। अधिकांश यात्री इस मंदिर तक नहीं पहुंच पाते हैं, क्योंकि बाहर से देखने पर यह उजाड़ हवेली के जैसा नजर आता है।

                                                    Temple of Bihari Ji


The temple of Goddess Bihari is the only temple of the coronation of the Vallabh sect, which is also called Baigi's temple. It is said that Jodhpur's Princess Rek Kanwar got married to Maharaja Jagatsingh of Jaipur, then he gave this temple to his master. This temple is also known as Baiji Temple due to the pilgrimage from Jodhpur.

 The temple of Bihari ji is located near the tourism bungalow 'Sarovar'. The temples of Radha-Krishna exist in the temple The Krishna statue is in Shyam format, which is called Bihari ji. Madan Mohan and Balakrishna are considered as a vigilance nearby. In the confirmative devotional tradition, the statue is called a vigil.




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