जोधपुर दुर्ग - ABOUT RAJASTHAN

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Monday, April 22, 2019

जोधपुर दुर्ग

                              जोधपुर दुर्ग (महेरान गढ)

इतिहास :-       यह एक पहाड़ी दुर्ग है | जिसका निर्माण राव जोधा ने 1459 में करवाया था | मेहरान गढ के नाम से जाना जाता है | मेहरान गढ़ इस नाम के पीछे दो किवदंतिया प्रचलित है                                      (01)  लाल पथरो  से निर्मित जोधपुर का दुर्ग मेहरानगढ म्युरा आक्रति का होने के कारण मयूरध्वज गढ़ भी                कहलाता है| दुर्ग निर्माण में रजिया भाम्भी (राजाराम मेगवाल ) का बलिदान महत्वपूर्ण है |
(02) कुछ वास्तुकार इसकी आक्रति मयूरपंख के रूप में होने के कारण इस नामकरण के पक्ष में अपना मत देते है |  
    राव जोधा सूर्य के उपासक थे इसलिए उन्होंने इस दुर्ग का नाम मिहिरगढ रखा। लेकिन राजस्थानी बोली में स्वर मिहिरगढ़ से मेहरानगढ हो गया। राठौड़ अपने आप को सूर्य के वंशज भी मानते हैं। किले के मूल भाग का निर्माण जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने 1459 में कराया। इसके बाद 1538 से 1578 तक शासक रहे जसवंत सिंह ने किले का विस्तार किया। किले में प्रवेश के लिए सात विशाल द्वार इसकी शोभा हैं। 1806 में महाराजा मानसिंह ने जयपुर और बीकानेर पर जीत के उपलक्ष में दुर्ग में जयपोल का निर्माण कराया। इससे पूर्व 1707 में मुगलों पर जीत के जश्न में फतेलपोल का निर्माण कराया गया था। दुर्ग परिसर में डेढ कामरापोल, लोहापोल आदि भी दुर्ग की प्रतिष्ठा बढाते हैं। दुर्ग परिसर में सती माता का मंदिर भी है। 1843 में महाराजा मानसिंह का निधन होने के बाद उनकी पत्नी ने चिता पर बैठकर जान दे दी थी। यह मंदिर उसी की स्मृति में बनाया गया।


History: - This is a hill fort. It was created by Rao Jodha in 1459. Mehran is known as Garh. Meheran Garh is the name of the two Kavdantiya prevalent (1), the fort of Jodhpur built from the Lal Pathro, due to Mehrangarh, Meura Akrati, is also called Meurdhwar Gadh. The sacrifice of Razia Bhambhi (Rajaram Megawal) is important in the construction of the fort.

(02) Some architects give their opinion in favor of this nomenclature due to its absence as a peacock.
   
 Rao Jodha was a worshiper of the sun, so he named this fort as Mihirgarh. But in the Rajasthani dialect, the vow was turned from Mihirgarh to Mehranangarh. Rathore also considers himself a descendant of Sun. The original part of the fort was constructed by Jodhpur founder Rao Jodha in 1459. After this, Jaswant Singh, who was ruling from 1538 to 1578, expanded the fort. The seven huge gates for admission to the fort are decorated with it. In 1806 Maharaja Mansingh constructed Jaipol in the fort in the wake of victory over Jaipur and Bikaner. Earlier in 1707 Fatalpol was constructed in the celebration of victory over the Mughals. Dard Kamarapole, Lohapol, etc. in the fort complex also increases the prestige of the fort. There is also a temple of Sati Mata in the fort complex. After Maharaja Mansingh passed away in 1843, his wife sat on a pyre and gave birth. This temple was built in memory of him.

                   खास आकर्षण

मोती महल 
मेहरानगढ़ पर 1595 से 1619 के दौरान शासन करने वाले राजा शूरसिंह ने मोती महल का निर्माण कराया था। मोती महल को वर्तमान में संग्रहालय बनाया गया है। दुर्ग में स्थित सभी महलों में से यह सबसे बड़ा और खूबसूरत है। मोती महल में बने पांच झरोखे विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

Moti mahal


Raja Shursingh, who ruled during 1595 to 1619 on Mehrangarh, built the Moti Mahal. The moti mahal is currently made a museum. It is the largest and most beautiful of all the palaces in the fort. Five zaroks made in the moti palace are particularly notable

शीशमहल
राजस्थान में कई विशाल दुर्गों में शीशमहल बने हुए हैं। मेहरानगढ़ के शीशमहल को अन्य सभी महलों से सबसे अच्छा माना जाता है। जयपुर के शीशमहल से इसकी तुलना की जाती है। राजपूत शैली के स्थापत्य का यह सबसे अच्छा उदाहरण  है। शीशमहल में छोटे-छोटे शीशों के टुकड़ों को दीवार पर चिपकाकर एक भव्य आकार दिया जाता है।

Sheeshmahal

Sheeshmahal has remained in many large fortresses in Rajasthan. Sheeshmahal of Mehrangarh is considered the best from all other palaces. It is compared to the Sheeshmahal of Jaipur. This is the best example of Rajput style architecture. In the Sheeshmahal the pieces of small mirrors are plotted by placing them on the wall and a grand shape.


फूलमहल
फूल महल का निर्माण मेहरानगढ पर 1724 से  1749 तक राज करने वाले  महाराजा अभय सिंह ने बनवाया था। यह एक ऐसा महल था जिसमें खुशी के अवसर पर राजपरिवार एकत्र होता था और खुशियां बनाई जाती थी। खुशी जाहिर करने के काम में आने के कारण इस महल की खूबसूरती भी शानदार है। कई बार राजा महाराजा यहां नृत्य के कार्यक्रमों का आयोजन भी करते थे और महफिल सजाई जाती थी।

Phul mahal

The construction of the flower palace was built by Maharaja Abhay Singh, who ruled from Mehrangarh in 1724 to 1749. It was a palace where the royalty was collected on the occasion of happiness and made funerals. The beauty of this palace is also magnificent due to the joy of being able to work. Many times, King Maharaja used to organize dance programs and decorate the mahfil.

तख्तविलास

यह महल राजा तख्तसिंह की आरामगाह थी। 1843 से 1873 तक शासन करने वाले तख्त सिंह ने इसका निर्माण कराया था। तख्तविलास परंपरागत शैली में बना शानदार महल है जिसकी को कांच के गोलों से बनाया गया था। 

Takht Vilas

This palace was the resting place of King Takhsingh. Takhat Singh, who ruled from 1843 to 1873, built it. Takht Vilas is a splendid palace built in traditional style, which was made of glass balls.

चामुंडा देवी

जोधपुर के शासक देवी उपासक थे। इसलिए दुर्ग में देवी मंदिर भी हैं। यहां का सबसे खास देवी मंदिर है चामुंडा माता। राज जोधा चामुंडा देवी के विशेष उपासक थे। 1460 में पुरानी राजधानी मंडोर से यह मूर्ति यहां लाकर स्थापित की गई थी। उल्लेखनीय है चामुंडा देवी मंडोर के परिहार शासकों की कुल देवी थी। राव जोधा भी चामुंडा देवी को ही अपना इष्ट मानते थे और रोजाना पूजा अर्चना किया करते थे। आज भी जोधपुर के लोगों की आराध्या देवी चामुंडा माता ही है और बड़ी संख्या में उनके दर्शनों के लिए श्रद्धालु यहां आते हैं।

Chamunda Devi

Rulers of Jodhpur were devi worshipers. Therefore there are also Goddess temples in the fort. The most famous goddess temple here is Chamunda Mata. Raj Jodha was a special worshiper of Chamunda Devi. In 1460, this statue was installed by the old capital Mandor here. It is noteworthy that Chamunda was the Goddess of the Parihar rulers of Goddess Mandore. Rao Jodha used to consider Chamunda Devi as his favored and worshiped regularly. Even today, the people of Jodhpur are the goddess Chamunda Mata, and a large number of devotees come here for their views.

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