राजस्थान के लोकदेवता (Folk god of Rajasthan) - ABOUT RAJASTHAN

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Monday, April 22, 2019

राजस्थान के लोकदेवता (Folk god of Rajasthan)

राजस्थान के लोकदेवता 

राजस्थान के लोकदेवता से तात्पर्य ऐसे महापुरषों से है जो मानव रूप में जन्म लेकर अपने असाधारण व लोकोपकारी कार्यो के कारण दैविक अंश के प्रतीक के रूप में स्थानीय जनता द्वारा स्वीकारे गये है |
समस्त राजस्थान में रामदेव जी , भेरूजी , तेजा जी ,पाबू जी , गोगा जी ,जाम्भो जी , देव नारायण जी ,आदि लोक देवता प्रसिद्ध है |


बाबा रामदेव 

परिचय

15वीं शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितियाँ बड़ी अराजक बनी हुई थीं और भेरव नामक राक्षस का आतंक था। ऐसे विकट समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तंवर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर भादो शुक्ल पक्ष दूज के दिन विक्रम सम्वत् 1409 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए (द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया, जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार, वैर-द्वेष, छुआछूत का विरोध कर अछूतोद्धार का सफल आन्दोलन चलाया।जन्म स्थान-ग्राम उण्डू काश्मीर तहशिल शिव जिला बाडमेर राजस्थान में हुआ था |

In the beginning of the 15th century, due to looting, untouchability, Hindu-Muslim clashes, India had become very chaotic and there was a terror of a monster named Bharav. Baba Ramdev Pir (Vikrama Siva 1409) on the day of Bhadhu Shukla Paksha Duj, at the house of Tanvar Vasanti Rajput and ruler of Runicha, in the place called Runi, near a famous town named Pokan in western Rajasthan, was such a time of trouble (Dwarkanath gave the name of King Ajmal ji The house was embodied, who opposed the tyranny of the people, opposed the hatred and untouchability, and successfully carried out the successful movement of untouchability. Amir Tahshil Shiva District Badamer Rajasthan


जन्म


राजा अजमल जी द्वारकानाथ के परमभक्त होते हुए भी उनको दु:ख था कि इस तंवर कुल की रोशनी के लिये कोई पुत्र नहीं था और वे एक बांझपन थे। दूसरा दु:ख था कि उनके ही राज्य में पड़ने वाले पोकरण से 3 मील उत्तर दिशा में भैरव राक्षस ने परेशान कर रखा था। इस कारण राजा रानी हमेशा उदास ही रहते थे। श्री रामदेव जी का जन्‍म भादवा सुदी पंचम को विक्रम संवत् 1409 को बाड़मेर जिले की शिव तहसील के उंडू काश्मीर गांव में सोमवार के दिन हुआ जिसका प्रमाण श्री रामदेव जी के श्रीमुख से कहे गये प्रमाणों में है जिसमें लिखा है सम्‍वत चतुर्दश साल नवम चैत सुदी पंचम आप श्री मुख गायै भणे राजा रामदेव चैत सुदी पंचम को अजमल के घर मैं आयों जो कि तुवंर वंश की बही भाट पर राजा अजमल द्वारा खुद अपने हाथो से लिखवाया गया था जो कि प्रमाणित है और गोकुलदास द्वारा कृत श्री रामदेव चौबीस प्रमाण में भी प्रमाणित है 

Even though Raja Ajmal Ji was a devotee of Dwarkanath, he was sad that there was no son for the light of this tree and he was a childless child. Secondly, the Bhairav ​​monster was disturbed by 3 nights north of Pokan, falling in his own state. For this reason, the King queen always remained sad. Birth of Sri Ramdev ji Bhadva Soodi Pancham was recorded on Vikram Samvat 1409 on Mondays in Umendu Kashmir village of Shiv Tahsil of Barmer district, which is in evidence in the proofs of Shri Ramdev's Shrimukh, which says Samvat Chaturdash Yuvaam Chait Sudi Pancham You have given me the name of Shri Muka Gayay Bhane Raja Ramdev Chait Sudi Pancham in the house of Ajmal, by the hands of King Ajmal himself on the book Bhaat of Tuvar Dynasty. Or that which was certified and done by Gokuldas, is also certified in Shri Ramdev's twenty four proof


बाल लीला

एक बार बालक रामदेव ने खिलोने वाले घोड़े की जिद करने पर राजा अजमल उसे खिलोने वाले के पास् लेकर गये एवं खिलोने बनाने को कहा। राजा अजमल ने चन्दन और मखमली कपडे का घोड़ा बनाने को कहा। यह सब देखकर खिलोने वाला लालच में आ ग़या और उसने बहुत सारा कपडा अपनी पत्नी के लिये रख लिया और उस में से कुछ ही कपडा काम में लिया। जब बालक रामदेव घोड़े पर बैठे तो घोड़ा उन्हें लेकर आकाश में चला ग़या। राजा खिलोने वाले पर गुस्सा हुए तथा उसे जेल में डालने के आदेश दे दिये। कुछ समय पश्चात, बालक रामदेव वापस घोड़े के साथ आये। खिलोने वाले ने अपनी गलती स्वीकारी तथा बचने के लिये रामदेव से गुहार की। बाबा रामदेव ने दया दिखाते हुए उसे माफ़ किया। अभी भी, कपडे वाला घोड़ा बाबा रामदेव की खास चढ़ावा माना जाता है।

Once Baba Ramdev insisted on the horse carrying the horse, King Ajmal took him by the arms of a toy and made a toy. King Ajmal asked to make sandal and velvety cloth horse. Seeing all this the feeder came in greed and he kept a lot of clothes for his wife and took some of that clothes. When Baba Ramdev sat on the horse, the horse moved in and took him to the sky. The king was angry at the blower and ordered him to be put in jail. After some time, Baba Ramdev came back with the horse. The blower has accepted his mistake and avoided Ramdev to escape. Baba Ramdev apologized for showing mercy. Still, the dresser is considered a special gift of Baba Ramdev.


विवाह

बाबा रामदेव जी ने संवत् १४२५ में रूणिचा बसाकर अपने माता पिता की सेवा में जुट गए इधर रामदेव जी की माता मैणादे एक दिन अपने पति राजा अजमल जी से कहने लगी कि अपना राजकुमार बड़ा हो गया है अब इसकी सगाई कर दीजिये ताकि हम भी पुत्रवधु देख सकें। जब बाबा रामदेव जी (द्वारकानाथ) ने जन्म (अवतार) लिया था उस समय रूक्मणी को वचन देकर आये थे कि मैं तेरे साथ विवाह रचाउंगा। संवत् १४२६ में अमर कोट के ठाकुर दल जी सोढ़ा की पुत्री नैतलदे के साथ श्री रामदेव जी का विवाह हुआ।

Baba Ramdev ji in the year 1425 got settled in the service of his parents, and in the year 1425, Ramdev's mother, Manadade, once told his husband, Raja Ajmal, that his prince has grown, now make his engagement, so that we too see his wife Able to When Baba Ramdev Ji (Dwarkanath) took birth (incarnation) at that time, he had come to give a promise to Rukmani that I will marry you. In the year 1426, the marriage of Shri Ramdev Ji with the daughter of Sodha, the daughter of Thakur of Amar Kot, was married to Natatala.

समाधि

मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल दशमी को बाबा रामदेव ने जीवित समाधि ली थी। संवत् १४४२ को रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुढ़ों को प्रणाम किया तथा सबने पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा कि प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधि पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधी ली |

It is believed that Baba Ramdev had taken alive Samadhi to Bhadrapad Shukla Dashami. In the year 1442, Ramdev ji offered his best wishes to all the elderly people with his hands and all the letters were filled with prayers and worshiped Ramdev ji with heartfelt mind and reverence. Ramdev ji stood in the Samadhi, giving his last pretext to everyone, said that worshiping the duo of Shukla Paksha for every month, worshiping the puja by performing bhajan kirtans, jogging the night, awaiting night. Every year, in the celebration of my birth festival and in the memory of meditation of the Ataladhana, a fair will be held at my samadhi level. Do not let misunderstandings and distinctions in my Samadhi worship I will always be with my devotees. Thus Shri Ramdev Ji Maharaj took Samadhi

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