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Wednesday, April 24, 2019

Aboutrajasthanblogspot.com › history-of-pabuji-rath... पाबूजी राठौड़ का इतिहास | history of pabuji rathore in hindi

लोकदेवता पाबू जी का इतिहास 

> पाबू जी के पिता नाम धांधलजी राठोड तथा माता का नाम कमलादे था | इनका विवाह अमरकोट के                    सूरजमल सोधा की पुत्री फूलमदे के साथ हुआ था |
>  ये मारवाड़ के राठोड वंश से सम्बंधित थे | इन्होंने गायो को छुड़ाने में अपने प्राण त्यागे | इनका का जन्म             पलोदी तहसील के कोलू गाव में 1239 ई में हुआ था |
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> विवाह मंडप से ही देवल चारनी की गाये अपने बहेनोई जिन्दराव खिंची के साथ छुड़ाने गये तथा देचू गाव के        समीप हुऐ युद्ध में लड़ते हुऐ  शहीद  हो गये | 
>  ऊठ के पालक राइका (रेबारी ) इन्हें अपना अराध्ये देव मानती है तथा रेबारी जाती के लोक पाबू जी के पावडे      गाती है |
> पाबू जी की गोड़ी का नाम केसर कलमी था | प्रमुख उपासक स्मारक स्थल कोलू (फलोदी) जोधपुर में स्थित         है | जहां प्रति वर्ष मेला भरता है |
>   पाबू जी का चिन्ह `भला लिए अस्वरोही है | ऊँटो के देवता के रूप में पाबू जी पूजे जाते है | ऊठ बीमार होने             पर पाबू जी पूजा की जाती है  |
 >  पाबूजी राजस्थान के लोक देवताओं में से एक माने जाते हैं। राजस्थान की संस्कृति में इन्हें विशेष स्थान           प्राप्त है।
>    पाबूजी उन लोगों में से एक थे, जिन्होंने लोक कल्याण के लिए अपना सारा जीवन दाँव पर लगा दिया और        देवता के रूप में हमेशा के लिए अमर हो गए।
>   पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता है। राजस्थान में इनके यशगान स्वरूप 'पावड़े' (गीत) गाये            जाते हैं व मनौती पूर्ण होने पर फड़ भी बाँची जाती है।
>    'पाबूजी की फड़' पूरे राजस्थान में विख्यात है।
>   पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता है। इनकी प्रतिमा में इन्हें भाला लिए हुए एक अश्वरोही के           रूप   में अंकित किया जाता है।
>    प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को पाबूजी के मुख्य 'थान' (मंदिर गाँव कोलूमण्ड) में विशाल मेला लगता है, जहाँ          भक्तगण हज़ारों की संख्या में आकर उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं।


जन्म

>  राजस्थान के प्राचीन लोक जीवन में कुछ ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं, जिन्होंने लोक कल्याण के लिए अपना              जीवन तक दाँव पर लगा दिया।
>  लोक देवता पाबूजी का जन्म संवत 1313 में जोधपुर ज़िले में फलौदी के पास कोलूमंड नामक गाँव में                 हुआ था। इनके पिता का नाम धाँधल जी राठौड़ था। वे एक दुर्ग के दुर्गपति थे।

अवतार

> पाबूजी को लक्ष्मणजी का अवतार माना जाता है। इनकी प्रतिमा में इन्हें भाला लिए हुए एक अश्वरोही के रूप      में अंकित किया जाता है।
>   प्रतिवर्ष चैत्र अमावस्या को पाबूजी के मुख्य 'थान' (मंदिर गाँव कोलूमण्ड) में विशाल मेला लगता है, जहाँ           भक्तगण हज़ारों की संख्या में आकर उन्हें श्रृद्धांजलि अर्पित करते हैं

पाबूजी की फड़

>  पाबूजी के यशगान में 'पावड़े' (गीत) गाये जाते हैं व मनौती पूर्ण होने पर फड़ भी बाँची जाती है। 'पाबूजी की         फड़' पूरे राजस्थान में विख्यात है, जिसे भोपे बाँचते हैं। ये भोपे विशेषकर थोरी जाति के होते हैं।
>  फड़ कपड़े पर पाबूजी के जीवन प्रसंगों के चित्रों से युक्त एक पेंटिंग होती है। भोपे पाबूजी के जीवन कथा को         इन चित्रों के माध्यम से कहते हैं और गीत भी गाते हैं। इन भोपों के साथ एक स्त्री भी होती है, जो भोपे के           गीतोच्चारण के बाद सुर में सुर मिलाकर पाबूजी की जीवन लीलाओं के गीत गाती है।
>  फड़ के सामने ये नृत्य भी करते हैं। ये गीत रावण हत्था पर गाये जाते हैं, जो सारंगी के जैसा वाद्य यन्त्र             होता    है। 'पाबूजी की फड़' लगभग 30 फीट लम्बी तथा 5 फीट चौड़ी होती है।
 >  इस फड़ को एक बाँस में लपेट कर रखा जाता है। पाबूजी के अलावा अन्य लोकप्रिय फड़ 'देवनारायण जी की       फड़' होती है।


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Monday, April 22, 2019

लोक देवता (Folk god) देवनारायण जी का इतिहास

लोकदेवता देवनारायण महाराज  का इतिहास

>  ये गुर्जर जाती के लोकदेवता है |
>   इनका जन्म 1243ई में हुआ था | 
>   इनके पिता का नाम सवाई भोज एव माता का नाम सेडू खठाणी था |
>    इनका का विवाह राजा जयसिंह की पुत्री की  पुत्री पीपलदे के साथ हुआ था |
>    गुर्जर जाती के लोक इन्हें विष्णु के अवतार मानते है | 
>    गुर्जर ही इनके अनुयाई है जो ``देवजी की  पड़`` गायन द्वारा इनका यशोगान करते है |

>  देवनारायण जी की फड़ अविवाहित गुर्जर भोपो द्वारा बांची जाती है ।
>   देवनारायण जी की फड राज्य की सबसे प्राचीन व सबसे लम्बी फड है ।
 >  इनकी फड़ पर भारत सरकार द्वारा 1992 में पांच रुपये का डाक टिकट जारी किया गया ।
>  देवनारायण जी की फड़ में जंतर वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है ।
>  देवनारायण जी को राज्य क्रांति का जनक माना जाता है । 
>  देवनारायण जी ने औषधि के रूप में गोबर और नीम के महत्व को स्पष्ट किया है ।
>  इनका मूल 'देवरा' आसींद भीलवाड़ा से 14 मील दूर गोठा दडावत में है ।
>  देवनारायण जी के देवरों में उनकी प्रतिमा के स्थान पर बडी ईटों की पूजा की जाती है ।
>  देव जी के अन्य देवरे-देवमाली (ब्यावर, अजमेर) , देवधाम जोधपुरिया (निवाईं, टोंक) व देव डूंगरी पहाड़ी           चित्तौड़ में है ।
>  देवनारायणजी का मंदिर आसींद (भीलवाड़ा) में है जहाँ प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मेला
     लगता है 
>  मेवाड शासक महाराणा साँगा का आराध्य देव देवनारायण जी थे इसी कारण देवदूँगरी (चित्तौड़रगढ) मे             देवनारायणजी का मंदिर का निर्माण राणा साँगा ने ही करवाया था ।

लोकदेवता तेजा जी  महाराज  का इतिहास

> तेजा जी महाराज का जन्म 1074 ई में नागौर जिले के खडनाल गाव में माघ शुक्ला चतुर्दशी के दिन हुआ था |
> इनकी माता का नाम राजकुवर तथा पिता का नाम ताहडजी था |
> तेजा जी विवाह पनेर (अजमेर जिले में) रायचन्द्र की पुत्री पैमलदे के साथ हुआ |

तेजाजी का हळसौतिया

जेठ के महिने के अंत में तेज बारिश होगई। तेजाजी की माँ कहती है जा बेटा हळसौतिया तुम्हारे हाथ से कर-
गाज्यौ-गाज्यौ जेठ'र आषाढ़ कँवर तेजा रॅ
लगतो ही गाज्यौ रॅ सावण-भादवो
सूतो-सूतो सुख भर नींद कँवर तेजा रॅ
थारोड़ा साथिड़ा बीजँ बाजरो।
सूर्योदय से पहले ही तेजाजी बैल, हल, बीजणा, पिराणी लेकर खेत जाते हैं और स्यावड़ माता का नाम लेकर बाजरा बीजना शुरू किया -
उठ्यो-उठ्यो पौर के तड़कॅ कुँवर तेजा रॅ
माथॅ तो बांध्यो हो धौळो पोतियो
हाथ लियो हळियो पिराणी कँवर तेजा रॅ
बॅल्यां तो समदायर घर सूं नीसर्यो
काँकड़ धरती जाय निवारी कुँवर तेजा रॅ
स्यावड़ नॅ मनावॅ बेटो जाटको।
भरी-भरी बीस हळायां कुँवर तेजा रॅ
धोळी रॅ दुपहरी हळियो ढाबियो
धोरां-धोरां जाय निवार्यो कुँवर तेजा रॅ
बारह रॅ कोसां री बा'ई आवड़ी।।

तेजाजी का भाभी से संवाद

नियत समय के उपरांत तेजाजी की भाभी छाक (रोटियां) लेकरआई। तेजाजी बोले-
बैल्या भूखा रात का बिना कलेवे तेज।
भावज थासूं विनती कठै लगाई जेज।।
देवर तेजाजी के गुस्से को भावज झेल नहीं पाई और काम से भी पीड़ित थी, उसने चिढने के लहजे में कहा-
मण पिस्यो मण पोयो कँवर तेजा रॅ
मण को रान्यो खाटो खीचड़ो।
लीलण खातर दल्यो दाणों कँवर तेजा रॅ
साथै तो ल्याई भातो निरणी।
दौड़ी लारॅ की लारॅ आई कँवर तेजा रॅ
म्हारा गीगा न छोड़ आई झूलै रोवतो।
ऐहड़ा कांई भूख भूखा कँवर तेजा रॅ
थारी तो परण्योड़ी बैठी बाप कॅ
भाभी का जवाब तेजाजी के कले जे में चुभ गया। तेजाजी नें रास और पुराणी फैंकदी और ससुराल जाने की कसम खा बैठे-
ऐ सम्हाळो थारी रास पुराणी भाभी म्हारा ओ
अब म्हे तो प्रभात जास्यां सासरॅ
हरिया-हरिया थे घास चरल्यो बैलां म्हारा ओ
पाणिड़ो पीवो नॅ थे गैण  तळाव रो।

जोधपुर दुर्ग

                              जोधपुर दुर्ग (महेरान गढ)

इतिहास :-       यह एक पहाड़ी दुर्ग है | जिसका निर्माण राव जोधा ने 1459 में करवाया था | मेहरान गढ के नाम से जाना जाता है | मेहरान गढ़ इस नाम के पीछे दो किवदंतिया प्रचलित है                                      (01)  लाल पथरो  से निर्मित जोधपुर का दुर्ग मेहरानगढ म्युरा आक्रति का होने के कारण मयूरध्वज गढ़ भी                कहलाता है| दुर्ग निर्माण में रजिया भाम्भी (राजाराम मेगवाल ) का बलिदान महत्वपूर्ण है |
(02) कुछ वास्तुकार इसकी आक्रति मयूरपंख के रूप में होने के कारण इस नामकरण के पक्ष में अपना मत देते है |  
    राव जोधा सूर्य के उपासक थे इसलिए उन्होंने इस दुर्ग का नाम मिहिरगढ रखा। लेकिन राजस्थानी बोली में स्वर मिहिरगढ़ से मेहरानगढ हो गया। राठौड़ अपने आप को सूर्य के वंशज भी मानते हैं। किले के मूल भाग का निर्माण जोधपुर के संस्थापक राव जोधा ने 1459 में कराया। इसके बाद 1538 से 1578 तक शासक रहे जसवंत सिंह ने किले का विस्तार किया। किले में प्रवेश के लिए सात विशाल द्वार इसकी शोभा हैं। 1806 में महाराजा मानसिंह ने जयपुर और बीकानेर पर जीत के उपलक्ष में दुर्ग में जयपोल का निर्माण कराया। इससे पूर्व 1707 में मुगलों पर जीत के जश्न में फतेलपोल का निर्माण कराया गया था। दुर्ग परिसर में डेढ कामरापोल, लोहापोल आदि भी दुर्ग की प्रतिष्ठा बढाते हैं। दुर्ग परिसर में सती माता का मंदिर भी है। 1843 में महाराजा मानसिंह का निधन होने के बाद उनकी पत्नी ने चिता पर बैठकर जान दे दी थी। यह मंदिर उसी की स्मृति में बनाया गया।


History: - This is a hill fort. It was created by Rao Jodha in 1459. Mehran is known as Garh. Meheran Garh is the name of the two Kavdantiya prevalent (1), the fort of Jodhpur built from the Lal Pathro, due to Mehrangarh, Meura Akrati, is also called Meurdhwar Gadh. The sacrifice of Razia Bhambhi (Rajaram Megawal) is important in the construction of the fort.

(02) Some architects give their opinion in favor of this nomenclature due to its absence as a peacock.
   
 Rao Jodha was a worshiper of the sun, so he named this fort as Mihirgarh. But in the Rajasthani dialect, the vow was turned from Mihirgarh to Mehranangarh. Rathore also considers himself a descendant of Sun. The original part of the fort was constructed by Jodhpur founder Rao Jodha in 1459. After this, Jaswant Singh, who was ruling from 1538 to 1578, expanded the fort. The seven huge gates for admission to the fort are decorated with it. In 1806 Maharaja Mansingh constructed Jaipol in the fort in the wake of victory over Jaipur and Bikaner. Earlier in 1707 Fatalpol was constructed in the celebration of victory over the Mughals. Dard Kamarapole, Lohapol, etc. in the fort complex also increases the prestige of the fort. There is also a temple of Sati Mata in the fort complex. After Maharaja Mansingh passed away in 1843, his wife sat on a pyre and gave birth. This temple was built in memory of him.

                   खास आकर्षण

मोती महल 
मेहरानगढ़ पर 1595 से 1619 के दौरान शासन करने वाले राजा शूरसिंह ने मोती महल का निर्माण कराया था। मोती महल को वर्तमान में संग्रहालय बनाया गया है। दुर्ग में स्थित सभी महलों में से यह सबसे बड़ा और खूबसूरत है। मोती महल में बने पांच झरोखे विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

Moti mahal


Raja Shursingh, who ruled during 1595 to 1619 on Mehrangarh, built the Moti Mahal. The moti mahal is currently made a museum. It is the largest and most beautiful of all the palaces in the fort. Five zaroks made in the moti palace are particularly notable

शीशमहल
राजस्थान में कई विशाल दुर्गों में शीशमहल बने हुए हैं। मेहरानगढ़ के शीशमहल को अन्य सभी महलों से सबसे अच्छा माना जाता है। जयपुर के शीशमहल से इसकी तुलना की जाती है। राजपूत शैली के स्थापत्य का यह सबसे अच्छा उदाहरण  है। शीशमहल में छोटे-छोटे शीशों के टुकड़ों को दीवार पर चिपकाकर एक भव्य आकार दिया जाता है।

Sheeshmahal

Sheeshmahal has remained in many large fortresses in Rajasthan. Sheeshmahal of Mehrangarh is considered the best from all other palaces. It is compared to the Sheeshmahal of Jaipur. This is the best example of Rajput style architecture. In the Sheeshmahal the pieces of small mirrors are plotted by placing them on the wall and a grand shape.


फूलमहल
फूल महल का निर्माण मेहरानगढ पर 1724 से  1749 तक राज करने वाले  महाराजा अभय सिंह ने बनवाया था। यह एक ऐसा महल था जिसमें खुशी के अवसर पर राजपरिवार एकत्र होता था और खुशियां बनाई जाती थी। खुशी जाहिर करने के काम में आने के कारण इस महल की खूबसूरती भी शानदार है। कई बार राजा महाराजा यहां नृत्य के कार्यक्रमों का आयोजन भी करते थे और महफिल सजाई जाती थी।

Phul mahal

The construction of the flower palace was built by Maharaja Abhay Singh, who ruled from Mehrangarh in 1724 to 1749. It was a palace where the royalty was collected on the occasion of happiness and made funerals. The beauty of this palace is also magnificent due to the joy of being able to work. Many times, King Maharaja used to organize dance programs and decorate the mahfil.

तख्तविलास

यह महल राजा तख्तसिंह की आरामगाह थी। 1843 से 1873 तक शासन करने वाले तख्त सिंह ने इसका निर्माण कराया था। तख्तविलास परंपरागत शैली में बना शानदार महल है जिसकी को कांच के गोलों से बनाया गया था। 

Takht Vilas

This palace was the resting place of King Takhsingh. Takhat Singh, who ruled from 1843 to 1873, built it. Takht Vilas is a splendid palace built in traditional style, which was made of glass balls.

चामुंडा देवी

जोधपुर के शासक देवी उपासक थे। इसलिए दुर्ग में देवी मंदिर भी हैं। यहां का सबसे खास देवी मंदिर है चामुंडा माता। राज जोधा चामुंडा देवी के विशेष उपासक थे। 1460 में पुरानी राजधानी मंडोर से यह मूर्ति यहां लाकर स्थापित की गई थी। उल्लेखनीय है चामुंडा देवी मंडोर के परिहार शासकों की कुल देवी थी। राव जोधा भी चामुंडा देवी को ही अपना इष्ट मानते थे और रोजाना पूजा अर्चना किया करते थे। आज भी जोधपुर के लोगों की आराध्या देवी चामुंडा माता ही है और बड़ी संख्या में उनके दर्शनों के लिए श्रद्धालु यहां आते हैं।

Chamunda Devi

Rulers of Jodhpur were devi worshipers. Therefore there are also Goddess temples in the fort. The most famous goddess temple here is Chamunda Mata. Raj Jodha was a special worshiper of Chamunda Devi. In 1460, this statue was installed by the old capital Mandor here. It is noteworthy that Chamunda was the Goddess of the Parihar rulers of Goddess Mandore. Rao Jodha used to consider Chamunda Devi as his favored and worshiped regularly. Even today, the people of Jodhpur are the goddess Chamunda Mata, and a large number of devotees come here for their views.

राजस्थान के लोकदेवता (Folk god of Rajasthan)

राजस्थान के लोकदेवता 

राजस्थान के लोकदेवता से तात्पर्य ऐसे महापुरषों से है जो मानव रूप में जन्म लेकर अपने असाधारण व लोकोपकारी कार्यो के कारण दैविक अंश के प्रतीक के रूप में स्थानीय जनता द्वारा स्वीकारे गये है |
समस्त राजस्थान में रामदेव जी , भेरूजी , तेजा जी ,पाबू जी , गोगा जी ,जाम्भो जी , देव नारायण जी ,आदि लोक देवता प्रसिद्ध है |


बाबा रामदेव 

परिचय

15वीं शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितियाँ बड़ी अराजक बनी हुई थीं और भेरव नामक राक्षस का आतंक था। ऐसे विकट समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तंवर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर भादो शुक्ल पक्ष दूज के दिन विक्रम सम्वत् 1409 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए (द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया, जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार, वैर-द्वेष, छुआछूत का विरोध कर अछूतोद्धार का सफल आन्दोलन चलाया।जन्म स्थान-ग्राम उण्डू काश्मीर तहशिल शिव जिला बाडमेर राजस्थान में हुआ था |

In the beginning of the 15th century, due to looting, untouchability, Hindu-Muslim clashes, India had become very chaotic and there was a terror of a monster named Bharav. Baba Ramdev Pir (Vikrama Siva 1409) on the day of Bhadhu Shukla Paksha Duj, at the house of Tanvar Vasanti Rajput and ruler of Runicha, in the place called Runi, near a famous town named Pokan in western Rajasthan, was such a time of trouble (Dwarkanath gave the name of King Ajmal ji The house was embodied, who opposed the tyranny of the people, opposed the hatred and untouchability, and successfully carried out the successful movement of untouchability. Amir Tahshil Shiva District Badamer Rajasthan


जन्म


राजा अजमल जी द्वारकानाथ के परमभक्त होते हुए भी उनको दु:ख था कि इस तंवर कुल की रोशनी के लिये कोई पुत्र नहीं था और वे एक बांझपन थे। दूसरा दु:ख था कि उनके ही राज्य में पड़ने वाले पोकरण से 3 मील उत्तर दिशा में भैरव राक्षस ने परेशान कर रखा था। इस कारण राजा रानी हमेशा उदास ही रहते थे। श्री रामदेव जी का जन्‍म भादवा सुदी पंचम को विक्रम संवत् 1409 को बाड़मेर जिले की शिव तहसील के उंडू काश्मीर गांव में सोमवार के दिन हुआ जिसका प्रमाण श्री रामदेव जी के श्रीमुख से कहे गये प्रमाणों में है जिसमें लिखा है सम्‍वत चतुर्दश साल नवम चैत सुदी पंचम आप श्री मुख गायै भणे राजा रामदेव चैत सुदी पंचम को अजमल के घर मैं आयों जो कि तुवंर वंश की बही भाट पर राजा अजमल द्वारा खुद अपने हाथो से लिखवाया गया था जो कि प्रमाणित है और गोकुलदास द्वारा कृत श्री रामदेव चौबीस प्रमाण में भी प्रमाणित है 

Even though Raja Ajmal Ji was a devotee of Dwarkanath, he was sad that there was no son for the light of this tree and he was a childless child. Secondly, the Bhairav ​​monster was disturbed by 3 nights north of Pokan, falling in his own state. For this reason, the King queen always remained sad. Birth of Sri Ramdev ji Bhadva Soodi Pancham was recorded on Vikram Samvat 1409 on Mondays in Umendu Kashmir village of Shiv Tahsil of Barmer district, which is in evidence in the proofs of Shri Ramdev's Shrimukh, which says Samvat Chaturdash Yuvaam Chait Sudi Pancham You have given me the name of Shri Muka Gayay Bhane Raja Ramdev Chait Sudi Pancham in the house of Ajmal, by the hands of King Ajmal himself on the book Bhaat of Tuvar Dynasty. Or that which was certified and done by Gokuldas, is also certified in Shri Ramdev's twenty four proof


बाल लीला

एक बार बालक रामदेव ने खिलोने वाले घोड़े की जिद करने पर राजा अजमल उसे खिलोने वाले के पास् लेकर गये एवं खिलोने बनाने को कहा। राजा अजमल ने चन्दन और मखमली कपडे का घोड़ा बनाने को कहा। यह सब देखकर खिलोने वाला लालच में आ ग़या और उसने बहुत सारा कपडा अपनी पत्नी के लिये रख लिया और उस में से कुछ ही कपडा काम में लिया। जब बालक रामदेव घोड़े पर बैठे तो घोड़ा उन्हें लेकर आकाश में चला ग़या। राजा खिलोने वाले पर गुस्सा हुए तथा उसे जेल में डालने के आदेश दे दिये। कुछ समय पश्चात, बालक रामदेव वापस घोड़े के साथ आये। खिलोने वाले ने अपनी गलती स्वीकारी तथा बचने के लिये रामदेव से गुहार की। बाबा रामदेव ने दया दिखाते हुए उसे माफ़ किया। अभी भी, कपडे वाला घोड़ा बाबा रामदेव की खास चढ़ावा माना जाता है।

Once Baba Ramdev insisted on the horse carrying the horse, King Ajmal took him by the arms of a toy and made a toy. King Ajmal asked to make sandal and velvety cloth horse. Seeing all this the feeder came in greed and he kept a lot of clothes for his wife and took some of that clothes. When Baba Ramdev sat on the horse, the horse moved in and took him to the sky. The king was angry at the blower and ordered him to be put in jail. After some time, Baba Ramdev came back with the horse. The blower has accepted his mistake and avoided Ramdev to escape. Baba Ramdev apologized for showing mercy. Still, the dresser is considered a special gift of Baba Ramdev.


विवाह

बाबा रामदेव जी ने संवत् १४२५ में रूणिचा बसाकर अपने माता पिता की सेवा में जुट गए इधर रामदेव जी की माता मैणादे एक दिन अपने पति राजा अजमल जी से कहने लगी कि अपना राजकुमार बड़ा हो गया है अब इसकी सगाई कर दीजिये ताकि हम भी पुत्रवधु देख सकें। जब बाबा रामदेव जी (द्वारकानाथ) ने जन्म (अवतार) लिया था उस समय रूक्मणी को वचन देकर आये थे कि मैं तेरे साथ विवाह रचाउंगा। संवत् १४२६ में अमर कोट के ठाकुर दल जी सोढ़ा की पुत्री नैतलदे के साथ श्री रामदेव जी का विवाह हुआ।

Baba Ramdev ji in the year 1425 got settled in the service of his parents, and in the year 1425, Ramdev's mother, Manadade, once told his husband, Raja Ajmal, that his prince has grown, now make his engagement, so that we too see his wife Able to When Baba Ramdev Ji (Dwarkanath) took birth (incarnation) at that time, he had come to give a promise to Rukmani that I will marry you. In the year 1426, the marriage of Shri Ramdev Ji with the daughter of Sodha, the daughter of Thakur of Amar Kot, was married to Natatala.

समाधि

मान्यता है कि भाद्रपद शुक्ल दशमी को बाबा रामदेव ने जीवित समाधि ली थी। संवत् १४४२ को रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुढ़ों को प्रणाम किया तथा सबने पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा कि प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधि पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधी ली |

It is believed that Baba Ramdev had taken alive Samadhi to Bhadrapad Shukla Dashami. In the year 1442, Ramdev ji offered his best wishes to all the elderly people with his hands and all the letters were filled with prayers and worshiped Ramdev ji with heartfelt mind and reverence. Ramdev ji stood in the Samadhi, giving his last pretext to everyone, said that worshiping the duo of Shukla Paksha for every month, worshiping the puja by performing bhajan kirtans, jogging the night, awaiting night. Every year, in the celebration of my birth festival and in the memory of meditation of the Ataladhana, a fair will be held at my samadhi level. Do not let misunderstandings and distinctions in my Samadhi worship I will always be with my devotees. Thus Shri Ramdev Ji Maharaj took Samadhi

Friday, April 19, 2019

( Folk goddesses of rajasthan)राजस्थान की लोकदेवियाँ

राजस्थान की लोकदेवियाँ 

करणी माता 

>  करणी माता दुनिया में चूहों की देवी के रूप में जनि जाती है |
>  करणी माता का मंदिर बीकानेर से 35 km दूर देशनोक नामक स्थान           पर है | करणी माता चारण जाती की   कुल देवी है |
>   मारवाड़ तथा बीकानेर के राठोड शासक अपनी कुल देवी  मानते है |
>   राव जोधा जी के रजा बनने के पस्यात जोधपुर के किले की नीव                 करणी माता द्वारा ही डाली गई थी |
>   राव बिका ने करणी माता के आशीर्वाद से ही बीकानेर की नीव                     डाली थी |
>   नवरात्रों में देशनोक में मेला भरता है

karani mata 


> Karani Mata is known in the world as the Goddess of rats.

> Karani Mata's temple is located at Deshnok, 35 km away from Bikaner. Karni Mata Charan is a           total goddess of caste.

> Rathod rulers of Marwar and Bikaner consider their total goddess.

> Rao Jodha ji's proposal to become a raja, the foundation of Jodhpur's fort was cast by the mother.

> Rao Bika had laid the foundation of Bikaner with the blessings of Karani Mata.

> In Navratri, fair is celebrated in Deshnok


केला देवी माता 

>  केला देवी का मंदिर करोली में स्थित है | 
>  केला देवी करोली के यदुवंस कि कुलदेवी है | हर वर्ष यहाँ चेत्र मास की सुकला अस्ठ्मीको त्रिकुट पर्वत की           छोटी पर लकी मेला भरता है |

kela devi mata

>  The temple of Kela Devi is located in Karoli.
>  Kali Devi is Kuldevi, the Yaduvans of Karoli. Every year, here is the Sukla Aththi of Chaitra              Masak, which fills the small fair at the Trikuta Mountains.

शिला देवी 

> शिला देवी का प्रशिद्ध मंदिर आमेर जयपुर में स्थित है
> 16 सदी में आमेर राज्ये के सासक मानसिंह ने पूर्वी बंगाल के विजय के पश्यात इस देवी को आमेर के                   राजभवनो के मध्ये स्थापित किया |

>  Temple of Shila Devi is situated in Amre Jaipur
>  In the 16th century, Sasak Mansingh of Aamer states established this goddess in the Raj Bhavan           of Amer in the pinnacle of East Bengal's victory.

जीण माता 

> जीण माता का मंदिर सीकर जिले के रेवासा गाव में स्थित है |
> जीण माता चोहानो की कुल देवी  है
>  हर्ष पर्वत पर स्थित शिलालेख के अनुसार जीणमाता के मंदिर का निर्माण पृथ्वीराज चोहान 1st  के शासन         काल में करवाया गया था | 

>  Jain Mata's temple is located in the Ravasana village of Sikar district.

>  Jeet Mata Chouhano is the total goddess

>  According to the inscription on Harsh Mountain, the temple of Jeenmata was constructed during          Prithviraj Chauhan 1st rule.


शीतला माता 


>  शीतला माता का प्रशिद्ध मंदिर चाकसू जयपुर में स्थित है |
>  इस देवी की पूजा खंडित मूर्ति के रूप में की जाती है | इस देवी का वाहन गधा तथा पुजारी कुमार होते है |
> चाकसू में प्रतिवर्ष शीतलाष्टमी को शीतलामाता के मेले का आयोजन किया जाता है |

> Pritish Temple of Sheetla Mata is located in Chakusu Jaipur.

> This goddess is worshiped as a fragmented idol. This goddess has a donkey and a Pujari Kumar.

> Shilamatma fair is organized every year in Chakusu.


नारायणी माता 

>  नारायणी माता का मंदिर अलवर की राजगढ तहसील में स्थित है | नारायणी माता नाइयो की कुलदेवी है |
>  नारायणी माता का मंदिर 11 वी सदी में प्रतिहार शेली में निर्मित है |
> ओर मीना जाती भी नारायणी माता को अपनी आर्द्ध्ये देवी मानती है |

> Narayani Mata's temple is located in the rajgarh tehsil of Alwar. Narayani Mata                                    is the Kuldevi of Naiyo.
> The temple of Narayani Mata is built in Pratihar Shelley in the 11th century.
> Meena Jati also considers Narayani mother as her goddess.


छिक माता 

> छिक माता का मंदिर जयपुर में स्थित है | माघ सुधि सप्तमी को छिक माता की पूजा की जाती है |

> Chikh Mata's temple is located in Jaipur. Magha Sudhi Saptami is worshiped on the Mother's Mother.

अम्बिका माता 

> अम्बिका माता का मंदिर जगत udaipur राजस्थान में स्थित है जो सक्ति पीठ कहलाता है | 

> Ambika Mata's temple is located in udaipur Rajasthan, which is called Shakti Peeth.

सकराय माता 

>  सकराय माता का मंदिर सीकर जिले में स्थित है | 
>   सकराय माता खण्डेलवालो की कुलदेवी मानी जाती है | 

> Sakarya Mata's temple is located in Sikar district.
> Sakarya mother is considered Kuldevi of Khandelwala.

सचियाय माता 


> सचियाय माता का मंदिर जोधपुर जिले ओसिया नामक स्थान पर स्थित है |
>  ये ओसवालो की कुलदेवी है 
>  सचियाय माता के मंदिर का निर्माण परमार राजकुमार उपलदेव ने करवाया था |

> Sachyayya Mata's temple is located in a place called Jodhpur district, Oceania.
> It is Kuldevi of Osvallo
> The temple of Sachyayya Mata was built by Parmar Rajkumar Upeldev.